कथा साहित्य में पारिवारिक जीवन मूल्यों का बदलता स्वरूप
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Abstract
कथा साहित्य भारतीय समाज की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और नैतिक संरचनाओं का एक सजीव दर्पण है। यह न केवल मानवीय भावनाओं और सामाजिक अनुभवों का चित्रण करता है, बल्कि परिवार जैसे समाज के सबसे छोटे और महत्वपूर्ण घटक के जीवन मूल्यों का विस्तृत विश्लेषण भी प्रस्तुत करता है। पारिवारिक मूल्य—जैसे सम्मान, सहयोग, त्याग, नैतिकता, आपसी समझ और भावनात्मक संवेदनशीलता—भारतीय समाज की नींव माने जाते हैं। समय के साथ समाज में हो रहे आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और तकनीकी बदलावों ने पारिवारिक संरचना और उसके मूल्यों में गहरा प्रभाव डाला है। इस अध्ययन का उद्देश्य कथा साहित्य के माध्यम से पारंपरिक और आधुनिक परिवारों के जीवन मूल्यों में आए परिवर्तनों का सैद्धांतिक और विश्लेषणात्मक अध्ययन करना है। इस अध्ययन में पारंपरिक परिवार की संरचना और उसके मूल्यों का विश्लेषण सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण के आधार पर किया गया है। पारंपरिक परिवार में सहयोग, समर्पण, बुजुर्गों का सम्मान और साझा जिम्मेदारी जैसी मूल्य आधारित संरचनाएँ स्पष्ट रूप से देखने को मिलती हैं। ये मूल्य परिवार को केवल एक सामाजिक इकाई नहीं बल्कि नैतिक, भावनात्मक और सांस्कृतिक संरचना भी बनाते हैं। हिंदी और भारतीय कथा साहित्य के माध्यम से इन पारंपरिक मूल्यों का सजीव चित्रण मिलता है, जो समाज की स्थायित्वकारी और नैतिक संरचना को समझने में मदद करता है। वहीं, आधुनिक परिवारों में व्यक्तिवाद, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, करियर महत्व और सामाजिक दबावों ने पारंपरिक मूल्यों के स्वरूप में परिवर्तन किया है। आधुनिक कथा साहित्य इन परिवर्तनों और उनके परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले परिवारिक संघर्षों, आपसी मतभेदों और नैतिक टकरावों को संवेदनशील रूप में प्रस्तुत करता है। सामाजिक संरचनावाद, सांस्कृतिक संरचनावाद और मनोवैज्ञानिक विकास सिद्धांत इस परिवर्तनशीलता को समझने के सैद्धांतिक आधार प्रदान करते हैं। यह दृष्टिकोण यह स्पष्ट करता है कि पारिवारिक मूल्य केवल स्थिर आदर्श नहीं हैं, बल्कि समाज, संस्कृति और व्यक्तिगत अनुभवों के माध्यम से विकसित और परिवर्तित होते रहते हैं।