वैश्वीकरण से प्रभावित भारतीय समाज सशक्त चित्रण : मुन्नी मोबइल
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Abstract
पेशे से पत्रकार प्रदीप सौरभ का यह पहला उपन्यास है। इस उपन्यास के लोकार्पण के समय प्रो.राजेन्द्र कुमार इस उपन्यास के सन्दर्भ में कहते हैं कि, “भूमंडलीकरण” समाज को जोड़ता नहीं बल्कि बांटता है। एक नहीं होने देता। और सांप्रदायिकता भी यही काम करती है। इस दोनों सन्दर्भों में प्रदीप सौरभ का उपन्यास मुन्नी मोबाईल काफी अहम है। यह उपन्यास सांप्रदायिकता और भूमंडलीकरण, दोनों के खतरों से लोगों को आगाह करता है।”1 यह उपन्यास यथार्थ के अत्यधिक नजदीक है, इसलिए उपन्यासकार उपन्यास के आरंभ में ही लिखता है कि, “इस उपन्यास के नायकों-खलनायकों को मैं काल्पनिक कहने का साहस नहीं जुटा पा रहा हूँ।”2 उपन्यास का मुख पात्र बिन्दू यादव उर्फ मुन्नी मोबाईल के ईर्द-गिर्द कथानक का ताना-बाना बुना गया है। कथानक मुन्नी मोबाइल नाम की इस महिला की जिंदगी से रू-ब-रू होता है, जिसका सफर एक सीधी-सादी नौकरानी के रूप में शुरु होकर वेश्यावृत्ति करवानेवाली महिला के रूप में अंत होता है। कथानक का आरंभ पत्रकार आनंद भारती के घर से होता है। आनंद भारती एक तेज-तर्रार और गंभीर पत्रकार है। मुन्नी बिहार से आकर दिल्ली से सटे साहिबाबाद में बसी हुई एक साधारण नौकरानी है जो आनंद भारती के घर में कामवाली है। उसके चरित्र का एक विशिष्ट पहलू है –दंबगता और महत्वाकांक्षा। एक आम आदमी की तरह उसकी भी इच्छा थी कि उसकी बेटियाँ पढ़ लिख कर साहब बन जाएं। अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए मुन्नी मोबाइल ने जो सफर पत्रकार आनंद भारती के घर से शुरू किया। आगे चलकर वह कामवालियों की यूनियन, साहिबाबाद के चौधरियों से पंगा, डाक्टरी के साथ नर्सिंग के अवैध धंधों, गाजियाबाद और पहाडगंज रूट की बसों के फर्राटा भरते पहियों के साथ चलता हुआ अंत में कॉलगल्स के रैकेट और मुन्नी मोबाईल के मर्डर के साथ पूरा होता है। मुन्नी की कहानी के माध्यम से उपन्यास में अनेक समस्याओं पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है। इस संदर्भ में प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता, निर्देशक डॉ.चंद्रप्रकाश द्विवेदी का कथन है, “मेरी दृष्टि में प्रदीप सौरभ बिहार बक्सर की मुन्नी की यात्रा के साथ पाठकों को उस दलदल की यात्रा पर भी ले जाते हैं, जो मुन्नी मोबाइल के चारों ओर बिखरा पड़ा है। साहिबाबाद की झुग्गी-झोपड़ियों में बसे गर्भपात केंद्र से लेकर, देश की राजधानी दिल्ली में फैले शरीर धंधे तक! गोधरा की आग और गुजरात के दंगों से होकर, साहिबाबाद के गली-कूचों से गुजरती ब्लू लाइन बस से अनेक ठौर –ठिकानों की सैर कराती मुन्नी की रहस्यमय हत्या पर खत्म होती मुन्नी मोबाइल की कहानी हमारे समाज की मोबाइल क्रांति के बाद की कहानी है।”3