"भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रेमचंद का साहित्य"

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रूबी शर्मा, सोनिया यादव

Abstract

भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा का इतिहास अत्यंत प्राचीन एवं समृद्ध है। यहाँ साहित्य केवल मनोरंजन का साधन न होकर जीवन मूल्यों, दर्शन, आचार-व्यवहार और समाज निर्माण का दर्पण माना गया है। ऋग्वैदिक सूक्तों से लेकर वेदांत, उपनिषद, पुराण, महाकाव्य, लोककथा, संत-साहित्य और आधुनिक गद्य-काव्य तक यह परंपरा सतत प्रवाहित रही है। इस परंपरा में प्रेमचंद का साहित्य विशेष स्थान रखता है। उन्होंने आधुनिक युग में भारतीय ज्ञान परंपरा के मानवीय, नैतिक एवं सामाजिक पक्षों को पुनर्जीवित करते हुए लोकचेतना के अनुरूप नई दिशा प्रदान की।


प्रेमचंद केवल कथाकार नहीं, बल्कि समाजद्रष्टा और जीवन-मूल्य के साधक भी थे। उनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति के मूलभूत आदर्श – सत्य, अहिंसा, करुणा, न्याय, समानता, लोकमंगल – स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं। उन्होंने साहित्य को “जीवन की आलोचना” बताया और अपनी लेखनी को जनहित के साधन के रूप में उपयोग किया।

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