भारत की रणनीतिक परिधि में चीन की पैठ: बांग्लादेश के साथ गहरे होते संबंधों का अध्ययन

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Pawan Kumar, Shreshtha Sharma

Abstract

यह लेख भारत, बांग्लादेश और चीन के बीच बदलते भू-राजनीतिक त्रिकोणीय संबंधो का विश्लेषण करता है, जिसमें खासतौर पर चीन और बांग्लादेश के बीच गहराते संबंधों के भारत पर रणनीतिक प्रभाव पर ध्यान दिया गया है। हिंद और प्रशांत महासागर क्षेत्र, विशेष रूप से बंगाल की खाड़ी, आज ऐसे अहम भू-क्षेत्र के रूप में उभरा है जहाँ बड़ी शक्तियाँ प्रभाव जमाने की कोशिश में लगी हैं। यह लेख भारत-बांग्लादेश-चीन के संबंधों के इसी बदलते आयाम का विश्लेषण करता है, और यह दिखाता है कि चीन और ढाका के बीच गहराते रिश्ते भारत की ‘पड़ोसी पहले’ नीति और पूरे क्षेत्र की स्थिरता के लिए किस तरह की चुनौती बनते जा रहे हैं।


चीन का दक्षिण एशिया में प्रभाव तेजी से बढ़ा है। बांग्लादेश अब उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन चुका है और वहां विदेशी निवेश और बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत कई बुनियादी ढाँचे की परियोजनाएं चल रही है। जैसे पद्मा पुल के ऊपर रेल लाइन और पायरा बंदरगाह। इसके साथ ही चीन बांग्लादेश को सबसे ज़्यादा रक्षा उपकरण देने वाला देश बन गया है, जो उसकी विदेशी सैन्य खरीद का लगभग 73.6% हिस्सा है। इसमें पनडुब्बियों की आपूर्ति से लेकर संयुक्त सैन्य अभ्यास तक शामिल हैं।


यह बढ़ता हुआ सहयोग भारत के लिए कई स्तरों पर रणनीतिक चुनौतियाँ पैदा करता है। आर्थिक रूप से देखें तो चीन की आधारभूत परियोजनाएं और व्यापार में बदलाव भारत की क्षेत्रीय संपर्क रणनीति और व्यापार प्रभाव को कमजोर कर रहे


हैं। सैन्य दृष्टि से, चीनी हथियारों पर बांग्लादेश की निर्भरता, "डेट ट्रैप डिप्लोमेसी" और "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स" जैसी रणनीतियों के साथ मिलकर भारत को घेराव और सिलिगुड़ी कॉरिडोर जैसे संवेदनशील इलाकों की सुरक्षा को लेकर चिंता में डाल रही है।


राजनयिक रूप से भारत और बांग्लादेश के संबंध ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहे है। परंतु 5 अगस्त 2024 की घटना के बाद बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन ने वहा अस्थिरता पैदा की है, जिसने भारत की चिंताओं को और बढ़ा दिया है। इस अस्थिर राजनीतिक माहौल का लाभ उठाकर चीन भारत के हितों की कीमत पर अपने प्रभाव को और गहरा कर सकता है। बांग्लादेश की हालिया अंतरिम सरकार के तहत विदेश नीति में भारत-समर्थक रुख से हटना नई दिल्ली के लिए एक और चुनौती बन गया है। यह स्पष्ट है कि चीन की रणनीति बहुआयामी जुड़ाव के ज़रिये बांग्लादेश में गहरी पकड़ बनाने की है।


‘शक्ति संतुलन सिद्धांत’ के आधार पर लेख यह तर्क देता है कि चीन की गतिविधियाँ केवल आर्थिक नहीं हैं, बल्कि भारत के प्रभाव को सीमित करने की एक सुविचारित रणनीति का हिस्सा हैं। निष्कर्षतः भारत के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह इस चुनौती से निपटने के लिए एक मज़बूत और प्रतिस्पर्धी रणनीति बनाए। जिसमें कूटनीति, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा तीनों स्तरों पर ठोस प्रयास हों, ताकि भारत अपने पड़ोस में अपनी प्रमुख भूमिका बनाए रख सके और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सके।

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